दरोग़-गोई की फ़ितरत को आग लग जाए तुम्हारी दोग़ली सूरत को आग लग जाए न जाने कितने ही लोगों को मार डाला है ख़ुदा करे कि मोहब्बत को आग लग जाए फ़क़ीर-ए-शहर को फ़ाक़ा-कशी ने मार दिया अमीर-ए-शहर की दौलत को आग लग जाए कहीं मिले जो वफ़ा तो ख़रीद कर रख लो न जाने कब यहाँ क़ीमत को आग लग जाए मआल-ए-ख़ुफ़तगी देखो ये क़ौम चीख़ रही ज़हीन फ़िक्र की ग़फ़लत को आग लग जाए हक़ीर समझे सभी को ज़लील करता फिरे अना-परस्त की शोहरत को आग लग जाए बदल सके न अदावत को जो उख़ुव्वत से तो ऐसे लोगों की सोहबत को आग लग जाए छुपा हो मक़्सद-ए-शोहरत अगर भलाई में तो ऐसी इज़्ज़त-ओ-शोहरत को आग लग जाए फ़िराक़-ए-जानाँ से 'असअद' का दिल हुआ छलनी दुआ-ए-दिल है कि हिजरत को आग लग जाए