डरा रही थी मुझे और डर लिया मैं ने फिर एक रोज़ मोहब्बत का सर लिया मैं ने किसी से माँगी मुसलसल रसद अज़िय्यत की फिर अपने साए को दीवार कर लिया मैं ने पहन रहे थे किसी ग़म का पैरहन कुछ लोग अगरचे महँगा पड़ा मुझ को पर लिया मैं ने बग़ैर उदासी मुनासिब नहीं था घर जाना ये इंतिज़ाम उसे छू के कर लिया मैं ने तमाम हो गई मुझ पर किसी की हुज्जत दोस्त जहाँ नहीं था बिफरना बिफर लिया मैं ने