फ़सादों के लिए राहें यूँ समझो खोल देता है उमडती भीड़ से जाने वो क्या कुछ बोल देता है न समझा आज तक कोई भी उस की इस सियासत को किसी की झोली भरता है किसे कश्कोल देता है तुम उस के ज़ुल्म का लोगो लगाओ इस से अंदाज़ा वो रस्सी काट कर हाथों में जिस दम डोल देता है बनाता है सदा हम को तशद्दुद का निशाना वो फ़ज़ा-ए-अम्न में ज़हर-ए-हलाहिल घोल देता है वो दौलत जिस का दुनिया में नहीं है कोई भी 'सानी' मोअल्लिम सारी दुनिया को वो शय अनमोल देता है