दर-ब-दर फिरता था जब-तब तुझे आबाद किया क्या बिगाड़ा था तिरा क्यूँ मुझे बर्बाद किया जिस तरह करता है तू ख़ून-ए-तमन्ना मेरा क्या कभी मैं ने भी ऐसे तुझे नाशाद किया ज़ख़्म जो तू ने दिए थे हैं अभी तक ताज़ा जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया इस से बेहतर था कि तू क़ैद ही रखता मुझ को पर कतर कर मिरा क्यूँ बाग़ में आज़ाद किया ज़िंदगी खेल नहीं है जिसे बच्चों की तरह कभी आबाद किया और कभी बर्बाद किया ज़ेब देता है तुझे मुफ़सिद-ए-दौराँ का ख़िताब नारवा था जो वो क्यूँ ऐ सितम-ईजाद किया बाग़बाँ जिस को बनाया था उसी ने 'बर्क़ी' सहन-ए-गुलशन में बपा नाला-ओ-फ़रियाद किया