दर्द अब हद से गुज़र कर ला-दवा होने को है आप की उल्फ़त में देखें और क्या होने को है आप के अबरू-ए-पुर-ख़म के करिश्मे अल-अमाँ इक इशारे में न जाने क्या से क्या होने को है बे-हयाई दौर-ए-हाज़िर की ये कहती है मुझे हुस्न पर्दे से निकल कर बद-नुमा होने को है तारे टकराने को हैं और ज़लज़ले आने को हैं अज़-ज़मीं-ता-आसमाँ महशर बपा होने को है रात दिन कटती है अब उम्र-ए-अज़ीज़ इस फ़िक्र में हश्र में पेश-ए-ख़ुदा 'ख़ुर्शीद' क्या होने को है