दर्द-ए-दिल ला-दवा नहीं होता आप चाहें तो क्या नहीं होता उन का वा'दा वफ़ा नहीं होता जिस को समझो हवा नहीं होता ख़ुद ही जब तक फ़ना नहीं होता क़तरा दरिया-अदा नहीं होता है ये नैरंगी-ए-ख़याल फ़क़त कुछ भी अच्छा-बुरा नहीं होता दर-ख़ूर-ए-क़हर हम तो हैं लेकिन इश्क़ का ये सिला नहीं होता हो गया दिल जुदा ख़ुदाई से तुझ से लेकिन जुदा नहीं होता सारी दुनिया के तज़्किरे हैं वहाँ ज़िक्र लेकिन मिरा नहीं होता दिल से मिटता नहीं ख़याल तिरा दिल का चाहा हुआ नहीं होता वाए बर-हाल-ए-नाख़ुन-ए-तदबीर एक उक़्दा भी वा नहीं होता जब वो होते नहीं हमारे पास कुछ भी उन के सिवा नहीं होता बे-ख़ुदी-हा-ए-मुद्दआ' की क़सम मुद्दआ' मुद्दआ' नहीं होता हुस्न और इश्क़ के सिवा ऐ दिल कुछ भी ला-इंतिहा नहीं होता दिल को थामे हुए मैं बैठा हूँ दिल में दर्द आज क्या नहीं होता बे-कसी-हा-ए-ग़म हज़ार अफ़सोस क्या ख़ुदा भी ख़ुदा नहीं होता हक़ यही है कि हक़्क़-ए-इश्क़ तिरा लाख अदा हो अदा नहीं होता इश्क़ जब तक शरीक-ए-हाल न हो ज़िंदगी में मज़ा नहीं होता ज़ुल्म दिल पर वो कितने ही ढाएँ दिल को उन से गिला नहीं होता वस्ल होता विसाल होता है आलम-ए-दिल में क्या नहीं होता दिल पे जैसी बलाएँ छाती हैं यूँ हुजूम-ए-बला नहीं होता आओ अब क़स्द-ए-दैर कर देखें यूँ दर-ए-का'बा वा नहीं होता राहबर तेरा कौन होगा 'जुनूँ' दिल ही जब रहनुमा नहीं होता