दर्द-ए-फ़ुर्क़त से जो भी घबराए इश्क़ उस को कभी न रास आए बात ही हम-नफ़स कुछ ऐसी थी जा के महफ़िल से हम जो लौट आए उस नशेमन की शान क्या होगी बर्क़ रह रह के जिस पे लहराए रौशनी का निशाँ नहीं मिलता हर तरफ़ ज़ुल्मतों के हैं साए तेरा दर छोड़ कर ऐ जान-ए-वफ़ा कोई जाए तो फिर कहाँ जाए या-ख़ुदा उम्र हो दराज़ उस की दुश्मनी की जो आग भड़काए ख़्वाब में उन के आस्ताने पर सज्दा-ए-शौक़ हम गुज़ार आए जाने क्या हो गया मुझे 'अंजुम' आँख भर आई जब वो याद आए