दयार-ए-इश्क़ में ऐसे भी हैं मक़ाम बहुत जहाँ जुनून का होता है एहतिराम बहुत कहीं जो तेशा-ए-फ़रहाद हाथ आ जाए जहान-ए-इश्क़ में हो जाए अपना नाम बहुत हो जिन दुआओं में इख़्लास का लहू शामिल उन्ही दुआओं से निकलेगा अपना काम बहुत न आओ तुम सर-ए-मक़्तल अभी ख़ुदा के लिए जुनून-ए-इश्क़ तुम्हारा अभी है ख़ाम बहुत हमारी ज़ात है सरमाया-ए-वफ़ा 'अंजुम' दयार-ए-इश्क़ में अपना सनद है नाम बहुत