दर्द हो तो दवा करे कोई मौत ही हो तो क्या करे कोई न सताए कोई उन्हें शब-ए-वस्ल उन की बातें सुना करे कोई बंद होता है अब दर-ए-तौबा दर-ए-मय-ख़ाना वा करे कोई क़ब्र में आ के नींद आई है न उठाए ख़ुदा करे कोई थीं ये दुनिया की बातें दुनिया तक हश्र में क्या गिला करे कोई न उठी जब झुकी जबीन-ए-नियाज़ किस तरह इल्तिजा करे कोई बोसा लें ग़ैर दें सज़ा हम को हम हैं मुजरिम ख़ता करे कोई बिगड़े गेसू तो बोले झुँझला कर न बलाएँ लिया करे कोई नज़्अ' में क्या सितम का मौक़ा है वक़्त है अब दुआ करे कोई हश्र के दिन की रात हो कि न हो अपना वा'दा वफ़ा करे कोई न सताए कोई किसी को 'रियाज़' न सितम का गिला करे कोई