दर्द में इक ज़रा कमी आई आप आए तो ज़िंदगी आई सच बताना पराए देसों में क्या मिरी याद भी कभी आई बर्क़ झलकी थी शोख़ आँखों में जिस्म से रूह तक चली आई आज फिर ज़ख़्म ने दहन खोले आज फिर आँख में नमी आई हम-सफ़र थे मिरे ग़मों के हुजूम साथ कुछ दूर तक ख़ुशी आई आग को रौशनी समझ बैठा मुझ को ये सोच कर हँसी आई दिल धड़कने लगा 'शराफ़त' फिर उन के दीदार की घड़ी आई