जिस वक़्त उस की चश्म से हम चार हो चले गोया कि दो-जहाँ से ख़बर-दार हो चले आराम-ओ-सब्र-ओ-ताब-ओ-तवाँ होश क्या क़रार ईती मताअ' दे के तुझे ख़्वार हो चले कुछ क़द्र जान-ओ-दिल को अगर हो तो ले वले कहने को हम भी उस के ख़रीदार हो चले गो जल के ख़ाक हो गए या ख़ुश रहे तो क्या आए थे इस जहान में बे-यार हो चले मालूम ये हुआ कि ग़रज़ दिल से थी जो अब ले दिल को वूहीं यार से अग़्यार हो चले आमद में जो मज़ा है सो आवर्द में नहीं कहने को हम भी साहिब-ए-अशआ'र हो चले आँझू नहीं मिज़ा पे 'अली' ये ब-क़ौल-ए-तर्ज़ थे दिल के आबले सो नुमूदार हो चले