दर्द-ओ-ग़म या किसी ख़ुशी की तरफ़ एक हो जाऊँ मैं किसी की तरफ़ गुम न हो जाऊँ इन अँधेरों में मुझ को ले जाओ रौशनी की तरफ़ एक सूरत को देखने के बाद मैं ने देखा नहीं किसी की तरफ़ प्यास दरियाओं की है मेरी मगर एक क़तरा है तिश्नगी की तरफ़ वो तो महलों में रहने वाले हैं वो न देखेंगे झोंपड़ी की तरफ़ मुझ को रंजूर ही नज़र आई जब भी देखा है ज़िंदगी की तरफ़