हिज्र के बोझ को ढोना भी नहीं आता है अब मुझे फूट के रोना भी नहीं आता है इक सितम ये है तुझे भूल नहीं पाते हैं और किसी और का होना भी नहीं आता है उन के हाथों से ही ग़ुर्बत ने किताबें छीनी जिन के हाथों में खिलौना भी नहीं आता है प्यार के बाग़ में नफ़रत को उगाऊँ कैसे मुझ को तो बीज ये बोना भी नहीं आता है सिसकियाँ सुन के मिरी रात पड़ोसी ने कहा क्या तुझे रात में सोना भी नहीं आता है उस को मख़मल के भी बिस्तर से शिकायत है 'मलिक' मेरे हिस्से में बिछौना भी नहीं आता है