दर्द से भारी हुआ दिल क्या हुआ क्या पता रग रग में शामिल क्या हुआ मिट गए हम जिस को पाने के लिए ज़िंदगी से हम को हासिल क्या हुआ यक-ब-यक सब दाग़ दिल के धुल गए मैं सफ़-ए-क़ातिल में शामिल क्या हुआ मेरे क़ातिल की निगाहें खुल गईं मैं ज़रा सा ख़ुद से ग़ाफ़िल क्या हुआ हर तरफ़ से मुझ को ही नोचा गया बस कमाने के मैं क़ाबिल क्या हुआ लोग पत्थर की तरफ़ राग़िब हुए आइना मद्द-ए-मुक़ाबिल क्या हुआ उठ रही हैं उस पे 'इरफ़ाँ' उँगलियाँ अपने मक़्सद में वो कामिल क्या हुआ