दर्द सीने में उठे भी तो दबाए रखना ग़म-ए-हालात से हर लम्हा निभाए रखना अपने एहसास को आँधी से बचाए रखना इस अंधेरे में कोई शम्अ' जलाए रखना जाने कब कौन कहाँ तुम से सहारा माँगे दर्द की धूप में कुछ फूल खिलाए रखना रह-ए-उल्फ़त में ग़म-ए-दिल की शिकायत बे-सूद फ़र्ज़ है चाक गरेबाँ का छुपाए रखना दिल में इक दर्द उठा बात लबों पर आई कितना मुश्किल है कोई बात भुलाए रखना हम गुज़र जाएँगे उड़ते हुए लम्हों की तरह राह में शौक़ से काँटों को बिछाए रखना ढूँड तारीक अँधेरों में उजाले 'नाशाद' कब तलक दर्द की दुनिया से बनाए रखना