गुलशन-ए-उम्मीद यूँ उजड़ा कि सहरा हो गया उस ने आँखें फेर लीं हर सू अंधेरा हो गया मौज-ता-ब-मौज फैली है बिसात-ए-काएनात प्यास जब डूबी समुंदर और गहरा हो गया बेबसी की धूप जब ख़्वाबों के चेहरे पर पड़ी आप की यादों का साया और गहरा हो गया ताबिश-ए-जल्वा की ये रंगीनियाँ किस से कहूँ मेरी नज़रों में हर इक मंज़र सुनहरा हो गया तीरगी ही तीरगी थी बज़्म-ए-एहसासात में आप जब आए किरन फूटी सवेरा हो गया बे-हक़ीक़त ज़िंदगी की हर हक़ीक़त है सराब आए ठहरे और चले दो दिन बसेरा हो गया क्यों है ऐ 'नाशाद' हर-सू आज तेरा तज़्किरा ऐसा लगता है कि शायद कोई तेरा हो गया