दर्द सुलगाया गया आँच बढ़ा ली गई है जान ठिठुरे हुए रिश्तों की बचा ली गई है घर की दहलीज़ पे लौटा है पशेमाँ कोई दश्त सब छान लिए ख़ाक उड़ा ली गई है ऐन मुमकिन था छलक जाते हमारे आँसू साअत-ए-ग़म बड़ी तरकीब से टाली गई है रास्ता कर दिया हमवार किसी का हम ने एक दीवार-ए-अना थी जो गिरा ली गई है रास आई न कभी गोशा-नशीनी 'नुसरत' बारहा यूँ मिरी तन्हाई खंगाली गई है