दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए लुत्फ़ देती है क्या उमीद-ए-वफ़ा बेवफ़ा बा-वफ़ा न हो जाए कैसे बेताब उन को देखूँगा आह यारब रसा न हो जाए दिल में हसरत बसा तो ली है मगर ये कड़ी सिलसिला न हो जाए अपनी दुनिया उसी से रौशन है गुल चराग़-ए-वफ़ा न हो जाए हम सितम को करम समझते हैं उन पे ये राज़ वा न हो जाए इक ज़माना है उस का दीवाना कहीं वो बुत ख़ुदा न हो जाए दिल ही सब से बड़ा सहारा है दिल किसी से जुदा न हो जाए तुम अगर छू लो अपने होंटों से शेर मेरा तिरा न हो जाए दिल लुटा कर 'जिगर' हमारी तरह कोई बे-आसरा न हो जाए