दर-ए-उम्मीद वा नहीं होता अब वो जल्वा-नुमा नहीं होता कितनी पुर-लुत्फ़ ज़ीस्त होती है जब कोई आसरा नहीं होता आँख से गिर गया हो जो आँसू वो किसी काम का नहीं होता ख़ुद गरेबाँ में झाँक कर देखा कोई इंसाँ बुरा नहीं होता तू सभी का है इक हमारे सिवा हम से बस ये गिला नहीं होता वही होता नहीं जो हम चाहें वर्ना होने को क्या नहीं होता जान कर मैं ख़मोश हूँ 'हैरत' मुझ से उस का गिला नहीं होता