दरिया-ए-इश्क़ जो था उतर कर नहीं रहा बातिन का हक़-शनास मगर मर नहीं रहा अच्छा तो आप ख़ुद ही रिवायत को तोड़ दें कोई अगर किसी का भला कर नहीं रहा जज़्बात इस लिए नहीं फूले फले कभी दिल याद-ए-इश्क़-ए-यार का महवर नहीं रहा शामिल नहीं है यार जो हूरान-ए-ख़ुल्द में गिनती में मेरी आज से सत्तर नहीं रहा ऐसे सितम-शिआ'र का बनता नहीं है ग़म जो छोड़ते हुए भी तुझे डर नहीं रहा फिर यूँ हुआ कि यार ने दीवार खींच दी जो मुश्तरक था नख़्ल-ए-सनोबर नहीं रहा 'ए'जाज़' कम नहीं ये फ़सुर्दा-दिली का भी हम डूबने चले तो समंदर नहीं रहा