दरिया के धड़कते सीने तक साहिल की दु'आ ले जाऊँगा हालात की लहरों पर इक दिन मैं ख़ुद को बहा ले जाऊँगा मैं अपने अंधेरे कमरे में परछाईं उगाने की ख़ातिर सूरज की शु'आ'ओं को अपनी मुट्ठी में छुपा ले जाऊँगा ख़्वाबों के दर-ओ-दीवार पे भी चेहरे की लकीरें फैलेंगी यादों के महकते सायों को आँखों में बसा ले जाऊँगा ऐ बाद-ए-हवादिस तेरी क़सम मैं हार न मानूँगा तुझ से मैं अपनी हथेली में रख कर इक और दिया ले जाऊँगा हक़-गोई अगर है जुर्म तो फिर ले जाओ सलीबों तक मुझ को सूली के लटकते फंदों तक मैं अपनी सदा ले जाऊँगा क्या सोच रहे हो ऐ लोगो अब फेंक के पत्थर तोड़ भी दो वर्ना मैं बदन के शीशे को फिर आज बचा ले जाऊँगा 'ख़ालिद' मैं किसी के कूचे से नाकाम उमीदों को ले कर इक रोज़ बदन से लिपटाए ज़ख़्मों की रिदा ले जाऊँगा