दरिया तलक रसाई का रस्ता न बन सका कूज़ा-गरान-ए-शौक़ से नक़्शा न बन सका ख़ुद को जला के राख उड़ाई फ़लक की सम्त शो'ला तो हो गया मैं सितारा न बन सका करता रहा है फ़ख़्र जो अपने नसीब पर माज़ी में खो गया कभी फ़र्दा न बन सका देखा गया था संग-ए-नज़र से जब आइना ऐसे चटख़ के टूटा दोबारा न बन सका सैल-ए-सरिश्क-ए-शाम की जानिब चला 'सुहैब' सोज़-ए-दरूँ का फिर भी किनारा न बन सका