दश्त में क़ैस-नुमा ख़ाक उड़ाता है कोई या'नी बरसों से चली रीत निभाता है कोई मिरे अंदर का सुख़न-फ़हम सलामत है अभी ख़्वाब में 'मीर' का इक शे'र सुनाता है कोई फूल गुल-दान में रखते हैं सभी मेज़ों पर नाम काग़ज़ पे तिरा लिख के सजाता है कोई जिस तरह अहद-ए-गुज़िश्ता को निभाता है कोई यूँ तिरी याद का तेहवार मनाता है कोई गिरवी रखता है बदन आँख जवानी सब कुछ ख़्वाब को बेच के ता'बीर कमाता है कोई