दरमांदगी-ए-आह-ए-शब-गीर को क्या कहिए इक नाला-ए-बे-कस की तासीर को क्या कहिए महरूमी-ए-क़िस्मत की कीजे तो शिकायत क्या तक़दीर तो दुश्मन है तक़दीर को क्या कहिए जिस बज़्म में उल्फ़त को तक़्सीर कहा जाए उस बज़्म को क्या कहिए तक़्सीर को क्या कहिए जो तीर कि बन जाए इक जुज़्व-ए-दिल-ए-बिस्मिल पैवस्त-ए-रग-ए-जाँ हो उस तीर को क्या कहिए जो हुस्न मुकम्मल था उस ज़ेहन-ए-मुसव्विर में तस्वीर में उतरा है तस्वीर को क्या कहिए हर साँस पे टूटे है इक एक कड़ी फिर भी हस्ती है कि जकड़ी है ज़ंजीर को क्या कहिए