ज़ुल्फ़ उस की मिरी ज़ुन्नार हुई जाती है बे-ख़ुदी और मज़ेदार हुई जाती है पड़ गए चश्म-ए-सितम-गर के शरारे हम पर ताब ज़ख़्मों की पुर-असरार हुई जाती है शुक्र है हम को मोहब्बत ने बचाए रक्खा वर्ना ये दुनिया तो बीमार हुई जाती है वहशतों ही की कशाकश का करिश्मा है ये रूह मिट्टी की भी बेदार हुई जाती है आबलों ने जो उड़ाई है हँसी ज़ालिम की दश्त की ख़ाक भी गुलज़ार हुई जाती है आज फिर उस की तमन्नाओं ने आँखें खोलीं आज वीरानी चमन-ज़ार हुई जाती है इस अदा से वो उतर आया मिरी धड़कन में ज़िंदगी अपनी तरहदार हुई जाती है इश्क़ ने ऐसी बुलंदी की ओढ़ाई चादर अब मोहब्बत मिरा किरदार हुई जाती है आह की बदली बरसती है सर-ए-शाम 'नदीम' रात एहसास से सरशार हुई जाती है