हर बुलंदी से गुज़र जाना था काम मुश्किल सही कर जाना था मौज-दर-मौज सँवरने के लिए ग़म के दरिया में उतर जाना था कब तलक कश्मकश-ए-मौत-ओ-हयात या तो जीना था या मर जाना था इश्क़ पाबंद-ए-गुलिस्ताँ क्यों हो बू-ए-गुल बन के बिखर जाना था कौन से मोड़ पे आ पहुँचा हूँ भूल बैठा हूँ किधर जाना था पाँव बे-जान थे आँखें बे-नूर दूर मंज़िल थी मगर जाना था वो भी नज़रों से गिरा है 'जौहर' जिस को मेराज-ए-नज़र जाना था