दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने दुनिया का मगर रूप बढ़ाया तिरी छब ने तू नींद में भी मेरी तरफ़ देख रहा था सोने न दिया मुझ को सियह-चश्मी-ए-शब ने हर ज़ख़्म पे देखी हैं तिरे प्यार की मोहरें ये गुल भी खिलाए हैं तेरी सुर्ख़ी-ए-लब ने ख़ुशबू-ए-बदन आई है फिर मौज-ए-सबा से फिर किस को पुकारा है तिरे शहर तरब ने दरकार है मुझ को तो फ़क़त इज़्न-ए-तबस्सुम पत्थर से अगर फूल उगाए मिरे रब ने वो हुस्न है इंसान की मेराज-ए-तसव्वुर जिस हुस्न को पूजा है मिरे शेर ओ अदब ने