दे कर मुझे वो याद सभी ख़्वाब ले गया या'नी मुझे भी साथ तह-ए-आब ले गया उस ने नहीं किया है मिरी रात को हसीं गो शाम को ही दिन के सभी ताब ले गया था ख़ूब तर्फ़-दार तुम्हारा पयाम-बर जिस जिस पे अच्छा लिक्खा था वो बाब ले गया मैं ने नहीं थी छेड़ी मिरी तब कोई ग़ज़ल जब मेरे सब ख़याल वो बे-ख़्वाब ले गया तब रह गया मैं अपनी ही उस सादगी पे दंग जब देखा मेरे हर्फ़ों को तालाब ले गया