जो तेज़ दौड़ते थे बहुत जल्द थक गए हम धीरे धीरे चलते हुए दूर तक गए उतरन पहन के शाह की ख़ुश हैं मुसाहिबीन सूरज से भीक माँग के ज़र्रे चमक गए यारों ने ज़ख़्म-ए-दिल का मिरे यूँ किया इलाज आए थे ख़ून पोंछने रख कर नमक गए आँखों को इंतिज़ार में पर्दे पे टाँक कर चौखट से पोस्टर की तरह हम चिपक गए वो शाइ'री भी है कि नहीं सोचिए 'कमाल' नाम-ए-ग़ज़ल पे आप बहुत कुछ तो बक गए