दे रहा है समर उदासी का मेरे दिल में शजर उदासी का पूरे तन को बना के मिट्टी से दिल बनाया मगर उदासी का मुझ से इक बार तू सबब तो पूछ ऐ मिरे बे-ख़बर उदासी का तू मुदावा न कर सकेगा कभी ऐ मिरे चारागर उदासी का आँख वीराँ है ज़ेहन गुम-सुम है और दिल है नगर उदासी का मैं ने देखा उदास नज़रों से मौसमों पर असर उदासी का शाइ'री बे-सबब नहीं उतरी ये भी है इक समर उदासी का कैफ़-आवर था इब्तिदा में इश्क़ और बाक़ी सफ़र उदासी का पहले तुम थे मकीं मगर अब तो दिल है मुद्दत से घर उदासी का काई जमने लगी है मंज़र पर ये हुआ है असर उदासी का हिज्र की शब का चाँद ऐसा था जैसे बू नामा-बर उदासी का आँख से उड़ गया है ताइर-ए-नौम ख़्वाब में था गुज़र उदासी का