मजबूरी लाचारी लिख हाँ रूदाद हमारी लिख ग़ैरों को इल्ज़ाम न दे अपनों की अय्यारी लिख सोच जो हल्की है तो क्या ग़ज़लें भारी भारी लिख ऐब न गिनवा औरों के अपनी ''कार-गुज़ारी'' लिख पहले झूटे वादे कर फिर अपनी लाचारी लिख चाहे हक़ीक़त कुछ भी हो अपना पलड़ा भारी लिख उजड़े घर के आँगन में हरी-भरी फुलवारी लिख हर मंसब हर ओहदे पर अपनी दा'वे-दारी लिख मात-पिता को दे बन-वास ख़ुद को आज्ञाकारी लिख 'चाँद' की ख़सलत में यारब कुछ तो दुनिया-दारी लिख