देख कर दिल-कशी ज़माने की आरज़ू है फ़रेब खाने की ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़ मुझ को आदत है मुस्कुराने की ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में रौशनी है शराब-ख़ाने की आ तिरे गेसुओं को प्यार करूँ रात है मिशअलें जलाने की किस ने साग़र 'अदम' बुलंद किया थम गईं गर्दिशें ज़माने की