मुझ से तो तार-तार गरेबाँ न हो सका ऐ इश्क़ तुझ पे कोई भी एहसाँ न हो सका इक मैं कि तेरी याद न दिल से भुला सका इक तू कि मेरे हाल का पुरसाँ न हो सका वो आह क्या जो क़हर-ए-इलाही न बन सकी वो अश्क क्या जो नूह का तूफ़ाँ न हो सका काफ़िर भी मय-कदे में मुसलमान हो गए लेकिन हरम में शैख़ मुसलमाँ न हो सका था जिन को नाज़ अपनी मसीहाई पर बहुत उन से भी मेरे दर्द का दरमाँ न हो सका कह दो तो दिल को चीर के साबित करूँ अभी तेरे बग़ैर कोई भी मेहमाँ न हो सका ये बात सच है उल्फ़त-ए-सरशार के बग़ैर 'बिस्मिल' मैं अंजुमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ न हो सका