देख लैल-ओ-नहार से बाहर ज़िंदगी है क़तार से बाहर ऐसे कोई ख़ुमार में भी नहीं जैसे हम हैं ख़ुमार से बाहर कहफ़ वालों से थक चुका था मैं आन बैठा हूँ ग़ार से बाहर हम गुज़िश्ता ज़मानों के आशिक़ हो रहे हैं शुमार से बाहर खुल के हँसियो नशे की हालत में ग़म ही ग़म हैं ख़ुमार से बाहर दाद बनती है फूल की 'आसिफ़' जो खुला है बहार से बाहर