हिज्र आसाँ बना लिया हम ने दश्त में दिल लगा लिया हम ने साँस आधा तुम्हारे साथ लिया और आधा बचा लिया हम ने तेरा ग़म था मसीह ओ मेहदी हमें इस को ज़िंदा उठा लिया हम ने पानी से तोड़ या उठा तेशा दिल को पत्थर बना लिया हम ने ज़िक्र आया तुम्हारी नगरी का और सर को झुका लिया हम ने कोई आफ़त ज़रूर टूटी है जब भी नाम-ए-ख़ुदा लिया हम ने