देख यूँ रूठ कर नहीं जाते बाग़ से बे-समर नहीं जाते बात को कर रहे हैं ख़त्म यहीं तेरी औक़ात पर नहीं जाते या'नी कि लोग अब जुदा हो कर ज़िंदा रहते हैं मर नहीं जाते अपनी आवारगी में रहते हैं तेरे उश्शाक़ घर नहीं जाते कूच कर जाएँ गर परिंदे तो उन के पीछे शजर नहीं जाते तेरे कूचे की सम्त पाँव उठे जब भी सोचा उधर नहीं जाते