देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते इक उम्र हुई याद के साए नहीं जाते अश्कों से ख़बर-दार कि आँखों से न निकलें गिर जाएँ ये मोती तो उठाए नहीं जाते हर जुम्बिश-ए-दामान-ए-जुनूँ जान-ए-अदब है इस राह में आदाब सिखाए नहीं जाते हम भी शब-ए-गेसू के उजालों में रहे हैं क्या कीजिए दिन फेर के लाए नहीं जाते शिकवा नहीं समझाए कोई चारागरों को कुछ ज़ख़्म हैं ऐसे कि दिखाए नहीं जाते ऐ दस्त-ए-जफ़ा सर हैं ये अरबाब-ए-वफ़ा के कट जाएँ तो कट जाएँ झुकाए नहीं जाते ऐ 'होश' ग़म-ए-दिल के चराग़ों की है क्या बात इक बार जला दो तो बुझाए नहीं जाते