ज़िंदगी इस लिए शायद है पशेमाँ ऐ 'होश' कि फ़क़त मौत है सरमाया-ए-इंसाँ ऐ 'होश' ख़ुश्क होंटों पे भी रखते हैं तबस्सुम की चमक कौन कहता है हमें बे-सर-ओ-सामाँ ऐ 'होश' वक़्त की आँच सिखा देती है जिस्मों का लहू दिल में रहते हैं मगर ख़ून के तूफ़ाँ ऐ 'होश' उन के सीनों में दहकते हुए अंगारे हैं तुम ने देखे हैं जो हँसते हुए इंसाँ ऐ 'होश'