देखे जो एक बार रुख़-ए-यार की तरफ़ फिर उम्र-भर न जाए वो गुलज़ार की तरफ़ हो देखना जिसे मिज़ा-ए-यार की तरफ़ देखे वो पहले ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़ार की तरफ़ अपनी जगह से हम नहीं उट्ठे ये सोच कर दिल है तो ख़ुद ही जाएगा दिलदार की तरफ़ किस के नसीब जागने वाले हैं क्या ख़बर रह रह के देखते हैं वो तलवार की तरफ़ उस दर पे कौन है कि वहाँ से कोई सदा आ आ के लौट जाती है दीवार की तरफ़ मैलान-ए-तब्अ'-ए-यार अजब है कि इन दिनों अपनों ही की तरफ़ है न अग़्यार की तरफ़ इक़रार की दिखा कोई सूरत कि ऐ ख़ुदा मुँह फेर कर वो बैठे हैं इंकार की तरफ़ रहमत तिरी सहारा बनी वर्ना हश्र में कोई नहीं था मुझ से गुनहगार की तरफ़ 'महफ़ूज़' तख़्त-गाह-ए-क़नाअत है और हम क्यों उठ के जाएँ अब किसी दरबार की तरफ़