हो ही जाता है किसी तरह गुज़ारा अपना वर्ना अब शहर में है कौन हमारा अपना दिल के दरिया में हुईं ग़र्क़ तमन्नाएँ तो क्या मौजा-ए-ख़ूँ से है गुल-रंग किनारा अपना किस क़दर संग-ए-मलामत है मिरे चारों तरफ़ मैं ने उस दर पे यूँही सर नहीं मारा अपना इक तमाशा ही सही आज हवा दें इस को और किस दिन के लिए था ये शरारा अपना नाम ऊँचा रहे ऐ पस्ती-ए-दुनिया तेरा है तिरे दम से बुलंदी पे सितारा अपना