देखी न मरते मरते भी सूरत हबीब की क़िस्मत तो देखना कोई इस बे-नसीब की ऐ जान जल्द आ नहीं ताख़ीर का ये वक़्त हालत बहुत बुरी है दिल-ए-ना-शकेब की ऐ सर्व सब की नज़रों से गिर जाएगा अभी तू हमसरी न कीजियो उस जामा-ज़ेब की आने लगा है बाग़ में सय्याद सुब्ह-ओ-शाम अब बूद-ओ-बाश हो चुकी याँ अंदलीब की मकतब में गर नशिस्त रही तेरी ऐ सनम तो सुब्ह-ओ-शाम ख़ुश लगे सोहबत अदीब की तू लाख गालियाँ मुझे दे ले अभी मियाँ पर बात मेरे सामने मत कर रक़ीब की क्यों देखता है नब्ज़ ये बीमार-ए-इश्क़ की 'अफ़सोस' आज अक़्ल किधर है तबीब की