दिल एक आन उस से मुलाक़ात और है होती है सुब्ह कोई घड़ी रात और है जो दम कि दौर-ए-जाम चले मुग़्तनिम ही जान दिल कोई दिन ये मौसम-ए-बरसात और है आशिक़ हुआ हूँ मैं नहीं तक़्सीर और कुछ गर उस पे क़त्ल कीजिए तो ये बात और है बाग़-ए-जहाँ की सैर दिला कर ले कोई दिन क़ाएम ये चंद रोज़ तिलिस्मात और है है मुझ को सोच देखिए क्या होवे बज़्म में इन अँखड़ियों की वज़्अ-ए-इशारात और है सिसके है कोई तड़पे है कोई दिला न जा सूरत कुछ उस के कूचे में हैहात और है दो-चार धौलें खा के तो मत जाओ शैख़ जी करनी अभी तुम्हारी मुदारात और है दिल अपने जी की बातें न कह उस से बज़्म में ऐ बे-लिहाज़ वक़्त-ए-हिकायात और है तब्दील कर के क़ाफ़िया और एक कह ग़ज़ल 'अफ़सोस' गो कि कहनी तुझे बात और है