देखने से तिरे जी पाता हूँ आँख के फेरते मर जाता हूँ तेरे होंटों के तईं पान से लाल देख कर ख़ून-ए-जिगर खाता हूँ आरज़ू में तिरी यक मुद्दत से अपने दिल के तईं तरसाता हूँ चाव जो दिल में भरे हैं प्यारे तुझ से कहता हुआ शरमाता हूँ भूले-बिसरे जो कभी वहशी सा तेरे कूचे की तरफ़ आता हूँ देख दरवाज़े की सूरत तेरे नक़्श-ए-दीवार सा हो जाता हूँ तू जो निकले है बदलता आँखें उस घड़ी अपना किया पाता हूँ दिल-ए-ग़म-गीं के तईं मुर्दा सा गोद में अपने उठा लाता हूँ आँसू पूछूँ हूँ दिलासा दे दे मन्नतें कर के मैं समझाता हूँ वो नहीं मानता जूँ जूँ 'हातिम' तूँ तूँ जीने से मैं घबराता हूँ