देखने वालो कहो दिल में कसक है कि नहीं उन के चेहरे पे मिरे ग़म की झलक है कि नहीं आप के हिज्र में रोता है ये दिल आठ पहर देखिए नम मिरे अश्कों से पलक है कि नहीं तुंद लहजे में किया तू ने सदा मुझ से कलाम तेरी आवाज़ में कुछ लोच लचक है कि नहीं बे-रुख़ी से तिरी दिल मेरा हुआ है घायल और ज़ख़्मों पे छिड़कने को नमक है कि नहीं साया-ए-ज़ुल्फ़ से महरूम हुआ है जिस दिन तेरे शैदा को उसी दिन से सनक है कि नहीं भूल जाता है हर इक बार वो वा'दे कर के दुश्मनी पर मिरी आमादा फ़लक है कि नहीं आदमी ज़ुल्मतक़िस्मत में रहेगा कब तक इस की तक़दीर में तारों की चमक है कि नहीं हो गया आज मिरा कुलबा-ए-अहज़ाँ रौशन उन के आने से मकाँ रश्क-ए-फ़लक है कि नहीं राएगाँ हो नहीं सकता कभी ख़ून-ए-उश्शाक़ कूचा-ए-यार के ज़र्रों में चमक है कि नहीं आप के आने से किस दर्जा मिला उस को सुकूँ रुख़-ए-बीमार पे ख़ुशियों की दमक है कि नहीं बा'द परतव के नवा करते हैं इस्लाह-ए-सुख़न मेरे अशआ'र में परतव की झलक है कि नहीं उस की उल्फ़त में बहुत बादिया-पैमाई की ऐ 'फ़ज़ा' पाँव के छालों में तपक है कि नहीं