वो कौन है जो यहाँ शादमाँ नहीं मिलता तिरी गली में कहीं आसमाँ नहीं मिलता मैं किस से वादी-ए-ग़ुर्बत में रास्ता पूछूँ लुटा हुआ भी कोई कारवाँ नहीं मिलता निगाह-ए-यार भी उक़्दा-कुशा-ए-दिल न हुई मिरी ख़लिश का कोई राज़-दाँ नहीं मिलता जबीन-ए-शौक़ की कम-वुसअ'ती का भी है क़ुसूर यही नहीं कि तिरा आस्ताँ नहीं मिलता जहाँ में कुछ भी नहीं मा-सिवा-ए-रंज-ओ-अलम मिरे नसीब का लिक्खा कहाँ नहीं मिलता ज़मीन-ए-शेर की दुश्वारियों का ख़ौफ़ नहीं मैं अपने रंग में 'हादी' कहाँ नहीं मिलता