दिल हुस्न के अंदाज़ से मसहूर बहुत है आँख उस बुत-ए-तन्नाज़ की मख़मूर बहुत है सुनते हैं कि है नज़्अ' में दीदार का वा'दा दिल मौत के अज़़कार से मसरूर बहुत है जलती है ज़बाँ तज़्किरा-ए-शो'ला-रूख़सां से दिल शम्अ की सूरत मिरा महरूम बहुत है दुनिया की निगाहों का बजा ख़ौफ़ है उस को इज़हार-ए-वफ़ा करने में मजबूर बहुत है रोके नहीं रुकती हैं तड़पती हुई आहें दिल हिज्र में उस शोख़ के रंजूर बहुत है हर साँस मुज़य्यन है मिरी याद से उस की है दिल से क़रीं नज़रों से जो दूर बहुत है टुकड़े दिल-ए-नाशाद के अब जुड़ नहीं सकते शीशा असर-ए-दर्द से ये चूर बहुत है लब पर न शिकायत हो न आँखों से गिरे अश्क दुश्वार मोहब्बत का ये दस्तूर बहुत है मिल जाता है मंज़िल का पता भटके हुओं को हर नक़्श-ए-क़दम हुस्न का पुर-नूर बहुत है वो मश्क़-ए-सितम शौक़ से करते रहें हम पर महबूब की ख़ातिर हमें मंज़ूर बहुत है मेहनत का सिला फ़ाक़ा-ओ-इफ़्लास ही पाया तंग आज के ज़रदार से मज़दूर बहुत है शल ऐसे हुए पाँव उठाए नहीं जाते गो सामने मंज़िल है मगर दूर बहुत है है नाज़ 'फ़ज़ा' को भी बहुत इश्क़ पे अपने गर हुस्न-ओ-नज़ाकत में वो मशहूर बहुत है