देखता भी है दुश्मनों की तरह मेहरबाँ भी है दोस्तों की तरह दिल मिरा महव-ए-इज़्तिराब है क्यों ज़ेहन में क्या है वसवसों की तरह मुस्कुराना भी 'ऐब है मुझ को क़हक़हे भी हैं उलझनों की तरह शब-ए-फ़ुर्क़त में मुझ को आती है कोई आवाज़ धड़कनों की तरह ये जो रिम-झिम घटा है सावन की इक झड़ी सी है आँसुओं की तरह रात-भर ख़्वाब मेरे कमरे में उड़ते फिरते हैं जुगनूओं की तरह दामन-ए-दिल पे फैले हैं 'शाहिद' ख़ुशनुमा रंग तितलियों की तरह