धड़कते दिल को पत्थरों में ढूँढना तो चाहिए कहीं ख़ुदा मिले हमें कोई ख़ुदा तो चाहिए नहीं कि अपने दोस्तों से कुछ उमीद हो मुझे मगर किसी को मेरा हाल पूछना तो चाहिए किसी से रस्म-ए-नामा-ओ-पयाम बंद ही सही मगर कभी कभी सबा को टोकना तो चाहिए किसी को जैसे अब किसी का इंतिज़ार ही नहीं कनार-ए-रहगुज़र कहीं कोई दिया तो चाहिए कभी तो मैं भी लुतफ़-ओ-कै्फ़-ए-गुफ़्तगु उठा सकूँ कभी ख़मोश बाम-ओ-दर को बोलना तो चाहिए कहो तो उठ के खिड़कियों के ऊदे पर्दे खोल दूँ इस आसमान पर कहीं कोई घटा तो चाहिए ज़रा रुको कोई बगूला उठ के रक़्स तो करे हम अहल-ए-दश्त के लिए भी रहनुमा तो चाहिए न जाने 'ज़ेब' मय-कदे से जल्द क्यों चला गया कटेगी कैसे रात कोई आश्ना तो चाहिए