जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं आसमाँ पर दिमाग़ रखते हैं साक़ी भर भर उन्हीं को दे है शराब जो कि लबरेज़ अयाग़ रखते हैं तेरे दाग़ों की दौलत ऐ गुल-रू हम भी सीने में बाग़ रखते हैं हाजत-ए-शम्अ क्या है तुर्बत पर हम कि दिल सा चराग़ रखते हैं आप को हम ने खो दिया है 'बयाँ' आह किस का सुराग़ रखते हैं