धुआँ धुआँ हैं निगाहों की बस्तियाँ क्या क्या चमक रही हैं ख़यालों की बिजलियाँ क्या क्या भँवर की आँख से तकते ही रह गए तूफ़ाँ पहुँच गई हैं किनारों पे कश्तियाँ क्या क्या मिलेगी मेरी भी किश्त-ए-नज़र को सैराबी हर एक सम्त उछलती हैं नद्दियाँ क्या क्या मिरी निगाह के दामन को खींच लेती हैं तिरे ख़याल की गुल-पोश वादियाँ क्या क्या शराब-ख़ाने के दीवार-ओ-दर दमक उट्ठे छलक पड़ीं मिरे साग़र से बिजलियाँ क्या क्या सुख़न के शोर में सुनता नहीं कोई लेकिन दिलों में गूँज रही हैं कहानियाँ क्या क्या 'नदीम' शो'बदा-ए-ज़िंदगी से आख़िर-कार लहक रही हैं निगाहों में खेतियाँ क्या क्या